न्याय पंचायत क्या है ?
What is Nyaya Panchayat?
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न्याय पंचायत गांव की न्यायपालिका होती है ।जहां ग्रामस्तर के विवाद निष्पक्ष और प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के आधार पर सुलझाए जाते हैं।न्याय पंचायत को दीवानी व छोटे- मोटे फौजदारी मामलों का निपटारा करने की शक्ति भी प्राप्त होती है।
देश की आजादी के बाद हमारे नीतिनिर्माताओं ने इस बात को समझा कि भारत की अधिकतर जनता गांवों में बसती है ,जो अपने मामलों का निपटारा करना भलीभांति जानती है ,तो क्यों न गांव के छोटे-मोटे विवादों का निपटारा करने की जिम्मेदारी, न्याय की जिम्मेदारी, गांव की जनता को ही दे दी जाए। हमारे नीतिनिर्माताओं की इसी परिकल्पना का परिणाम है न्याय पंचायत।जिसे उत्तरप्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1947 ने कानूनी रूप दिया व 73वें संविधान संशोधन नेे संवैधानिक रूप ।
वर्तमान में भारत के कुल आठ राज्यों में न्याय पंचायतो का गठन किया गया है।जो हैं-उत्तरप्रदेश ,उत्तराखण्ड,हिमाचल प्रदेश ,पंजाब ,बिहार ,मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ हैं ,जहाँ न्याय पंचायत का गठन किया गया है।
न्याय पंचायत क्या है निम्न बिदुओं द्वारा आसानी से समझा जा सकता है
- न्याय पंचायत गांव की न्यायपालिका होती है।
- दो से तीन ग्राम पंचायतों पर एक न्याय पंचायत का गठन किया जाता है।
- न्याय पंचायत के सदस्यों की नियुक्ति विहित प्राधिकारी द्वारा की जाती है।
- न्याय पंचायत सदस्यों की नियुक्ति ग्राम पंचायत सदस्यों में से ही विहित प्राधिकारी द्वारा की जाती है।
- न्याय पंचायय सदस्यों को पंच कहा जाता है ।
- न्याय पंचायत के सदस्यों की संख्या न्यूनतम 10 व अधिकतम 25 होती है।
- न्याय पंचायत के सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है।
- न्याय पंचायत में एक सरपंच होता है व एक उप सरपंच होता है।
- न्याय पंचायत को दीवानी व फौजदारी मामले सुनने का अधिकार प्राप्त होता है।
- न्याय पंचायत को कारावास का दंड देने का अधिकार नहीं होता है।
- न्याय पंचायत को अधिकतम 250 रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार प्राप्त होता है।
न्याय पंचायत का गठन-
न्याय पंचायत सम्बन्धी प्रावधान उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनिम ,
1947 के अध्याय
6 में उल्लेखित हैं।अधिनिम की धारा
42 में न्याय पंचायत के गठन का प्रावधान है ।जिसके अनुसार राज्य या विहित प्राधिकारी जिलों को मंडल में विभक्त करते हैं ,प्रत्येक मंडल में दो से चार
ग्राम पंचायत या उतनी ग्राम पंचायत जितनी ईष्टकर हों ,सम्मिलित कर प्रत्येक मंडल में एक
न्याय पंचायत का गठन किया जाता है।यहाँ आवश्यक यह है कि जिन ग्राम पंचायतों को न्याय पंचायत में शामिल किया जाता है , उन ग्राम पंचायतों के के क्षेत्र यथासम्भव परस्पर संलग्न होना अनिवार्य है।
प्रत्येक न्याय पंचायत में कम से कम 10 या अधिक से अधिक 25 सदस्य होते हैं।
न्याय पंचायत सदस्यों की नियुक्ति व कार्यकाल-
धारा 43 में न्याय पंचायत के सदस्यों की नियुक्ति का उल्लेख किया गया है।ग्राम पंचायत के सदस्यों में से विहित प्राधिकारी न्याय पंचायत के सदस्यों की नियुक्ति करता है।न्याय पंचायत सदस्य को ही पंच कहा जाता है।न्याय पंचायत का सदस्य नियुक्ति होने के उपरांत वह सदस्य ग्राम पंचायत का सदस्य नहीं रह जाता।ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत में रिक्त हुये सदस्य का निर्वाचन धारा 12 के प्रावधानानुसार होता है।
न्याय पंचायत सदस्यों का कार्यकाल उनके न्याय पंचायत का सदस्य होने की तिथि से आरंभ होकर लगभग 5 वर्ष तक रहता है।अर्थात ग्राम पंचायत के कार्यकाल के साथ ही न्याय पंचायत के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
सरपंच व सहायक सरपंच का निर्वाचन -
धारा 43 के अंतर्गत नियुक्ति किये गए सदस्यों में से विहित रीति व अवधि के भीतर एक सरपंच व एक सहायक सरपंच चुना जाता है बशर्ते वह कार्यवाहियों को अभिलिखित करने की क्षमता रखता हो।
न्याय पंचायत सदस्य अर्थात पंचों का त्यागपत्र देना-
सरपंच ,सहायक सरपंच या न्याय पंचायत का कोई अन्य सदस्य (पंच)अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा विहित प्रधिकारी को सम्बोधित कर अपना त्यागपत्र दे सकते हैं।
न्याय पंचायत की न्यायपीठ अर्थात बैंच का गठन-
धारा 49 के तहत न्याय पंचायत की न्यायपीठ अर्थात बैंच गठित करने का अधिकार सरपंच को होता है ।सरपंच ,न्याय पंचायत के समक्ष आने वाले मुकदमों के निस्तारण के लिये पांच सदस्यों की न्यायपीठ अर्थात बैंच गठित करता है।
कोई पंच ,सरपंच अथवा सहायक सरपंच ऐसे किसी मुकदमे के परीक्षण या जाँच में भाग नहीं ले सकता है जिसमे वह स्वयं या उसका कोई निकट सम्बन्धी या उसका कोई नियोजक ,ऋणी,ऋणदाता अथवा साझेदार एक पक्ष हो अथवा जिसमे उक्त व्यक्ति कोई व्यक्तिगत रूप से अभिरुचि रखता हो।
यदि राज्य सरकार को ऐसा महसूस होता है कि किसी मुकदमे के सम्बंध में विशेष पीठ के गठन की आवश्यकता है,तो राज्य सरकार भी न्याय पीठ गठित कर सकती है।
किसी बैंच के निर्माण तथा उसके कार्यप्रणाली से सम्बद्ध कोई विवाद विहित प्रधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा तथा विहित प्रधिकारी का निर्णय सर्वमान्य होगा।
न्यायपंचायत का क्षेत्राधिकार
उत्तरप्रदेश पंचायती राज अधिनियम की धारा 51 के तहत न्याय पंचायत को कुछ क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं-
- दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में किसी बात के होते हुये फौजदारी का ऐसा प्रत्येक मामला, जो न्यायपंचायत में परीक्षणीय हो ,न्याय पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
- सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में किसी बात के होते हुए दीवानी का कोई ऐसा वाद जो न्याय पंचायत में परीक्षणीय हो ,न्याय पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
न्याय पंचायत द्वारा हस्तक्षेप-
उत्तरप्रदेश पंचायती राज अधिनियम की धारा 52 के तहत न्याय पंचायत अपने क्षेत्राधिकार में घटित होने वाले अपराधों का संज्ञान लेकर उसमे हस्तक्षेप कर सकती है।
निम्नलिखित अपराध एवं उसके उकसाने तथा उनके करने की चेष्टाएँ जिस न्याय पंचायत के अधिकार क्षेत्र के भीतर किये जायेंगे , न्याय पंचायत उन अपराधों में हस्तक्षेप करेगी।न्याय पंचायत निम्न अपराधों का संज्ञान ले सकती है-
क- भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत निम्नलिखित अपराध -
- धारा 140 - ऐसा व्यक्ति जो सेना में नहीं है सैनिक,नौ सैनिक या वायु सैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक या टोकन पहने।
- धारा 172 - सम्मनों की तामील का या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना ।
- धारा 174 - लोकसेवक का आदेश न मानकर गैर हाजिर रहना।
- धारा 289 - जीवजंतुओं के सम्बन्ध में लापरवाही पूर्ण कार्य करना ।
- धारा 269 - लापरवाही पूर्ण कार्य जिसमे संकटपूर्ण रोग के संक्रमण फैलने की संभावना हो।
- धारा 179 - प्राधिकृत लोकसेवक द्वारा प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करने पर।
- धारा 277 - सार्वजनिक जलस्रोत या जलाशय को दूषित या गन्दा किया जाने का अपराध ।
- धारा 283 - सार्वजनिक मार्ग या नौ परिवहन के मार्ग में बाधा या अवरोध उतपन्न करना।
- धारा 285 - अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बंध में लापरवाही पूर्ण ढंग से कार्य करना।
- धारा 290 - अन्य अनुबंधित मामले में लोक न्यूसेंस के लिए दण्ड।
- धारा 294 - अश्लील कार्य का प्रसार करना।
- धारा 341 - सदोष अवरोध के लिये दण्ड।
- धारा 352 - गम्भीर प्रकोपन होने से या हमला करने से या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दण्ड।
- धारा 357 - किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्न में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
- धारा 358 - गम्भीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
- धारा 374 - किसी व्यक्ति की इच्छा के बिना श्रम करने के लिए विवश करना ।
- धारा 379 - चोरी के लिए दण्ड।
- धारा 403 - सम्पति का बेमानी से दुर्नियोग करना।
- धारा 411 - चुराई हुई सम्पति को बेमानी से प्राप्त करना ( धारा 379,403 ,411 के अधीन मुकदमे में चुराई या दुर्नियोग वस्तु का मूल्य 50 रुपये से अधिक न हो)।
- धारा 426 - नुकसान के लिए दण्ड।
- धारा 428 - 10 रुपये मूल्य के जीवजन्तु का वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि।
- धारा 431 - सार्वजनिक सड़क ,पुल ,नदी या जल को क्षति पहुंचाना।
- धारा 445 - गृह भेदन।
- धारा 448 - गृह अतिचार के लिए दण्ड ।
- धारा 504 - लोक शांति को भंग करने के आशय से किया गया अपमान।
- धारा 509 - शब्द,अंग विक्षेप या अर्थ जो किसी स्त्री की लज्जा अनादर के आशय से किया गया कार्य।
- धारा 510 - किसी व्यक्ति द्वारा नशीले पदार्थ का सेवन कर लोक स्थान पर दुराचरण।
ख- पशुओं द्वारा अनधिकार प्रवेश एक्ट ( cattle trespass act) 1871 की धारा 24 व 26 के अंतर्गत अपराध।
ग- उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट बोर्ड प्राइमरी शिक्षा अधिनियम 1926 की धारा 10 की उपधारा 1 के तहत अपराध।
घ- सार्वजनिक जुआ ( public gambling ) एक्ट 1867 की धारा 3,4,7 तथा 13 के अंतर्गत अपराध।
ङ- पूर्वोक्त विधायनो अथवा किसी अन्य विधायन के तहत कोई ऐसा अपराध जिसे राज्य सरकार गजट में विज्ञापित करके पंचायत द्वारा हस्तक्षेप घोषित करे
च- इस अधिनियम या उसके अंतर्गत बनाये गए किसी नियम के अंतर्गत कोई अपराध।
शांति बनाए रखने के लिए प्रतिभूति-
पंचायती राज अधिनियम की धारा 53 में न्याय पंचायत के सरपंच को यह शक्ति प्राप्त है कि वह किसी व्यक्ति को जिससे यह आशंका हो कि अमुक व्यक्ति शांति भंग कर सकता है ,को बॉन्ड भरने की कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है।धारा 53 के तहत निम्न प्रावधान हैं-
- जब किसी न्याय पंचायत के सरपंच को यह आशंका करने के कारण हों कि कोई व्यक्ति शान्ति भंग करेगा या सार्वजनिक शांति में बाधा डाल सकता है तो वह उस व्यक्ति से कारण बताने के लिए कह सकता है कि 15 दिन से अधिक अवधि तक निश्चित शांति बनाए रखने के लिये 100 रुपये का प्रतिभूति सहित या प्रतिभूति रहित बॉन्ड क्यों न निष्पादित करे।
- सरपंच इस सम्बंध मे नोटिस जारी करने के बाद उक्त विषय को न्यायपीठ को निर्दिष्ट कर देती है।न्यायपीठ चाहे तो इस सम्बंध में जारी नोटिस को उत्सर्जित (discharge) कर सकती है।
न्याय पंचायत के समक्ष विधि व्यवसायी पैरवी नहीं करेंगे-
उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम की धारा 80 के तहत कोई विधि व्यवसायी न्याय पंचायत में किसी पक्ष की ओर से उपस्थित नहीं होगा ,न ही बहस करेगा और न ही कोई कार्य करेगा।
किंतु प्रतिबन्ध यह है कि जो व्यक्ति बंद है ,अभिरक्षा में है या निरुद्ध है उस व्यक्ति को अपनी पसंद के विधि व्यवसायी से सलाह लेने या पैरवी कराने का अधिकार होगा।
जमीनी हकीकत -
दोस्तों हमारे नीतिनिर्माताओं ने न्याय पंचायत जैसी सुंदर अवधारणा हमारे गांवो को दी ,कानूनी रूप दिया तथा बाद में 73 वें संविधान संशोधन द्वारा संवैधानिक रूप भी दिया पर आज सिर्फ भारत के आठ राज्यों में ही न्याय पंचायत का प्रावधान है, उनमें से भी कई राज्यों में न्याय पंचायतें निष्क्रिय हैं।
उत्तरप्रदेश में अंतिम बार न्याय पंचायत का गठन 1972 में किया गया था तब से आज तक न्याय पंचायत का गठन नहीं किया गया।यह तो संवैधानिक संस्थाओं व संविधान का घोर उल्लंघन है। आज उत्तरप्रदेश सरकार न्यायपंचायत के अस्तित्व को समाप्त करना चाहती है।न्याय पंचायत के समाप्ति सम्बन्धी बिल विधानसभा में 27 जून को प्रस्तुत किया गया ततपश्चात विधानपरिषद में यह बिल पास न हो सका तथा वहां इस बिल को विशेषज्ञ समिति को विचार करने के लिए दे दिया गया।जिसके कारण उत्तर प्रदेश में न्याय पंचायत निष्क्रिय रूप में ही सही अभी तक अस्तित्व में है।
जाने अनजाने हमारे कानून निर्माता न्याय के उस आधार को मिटाना चाहते हैं जिसके अस्तित्व मात्र से वर्तमान न्याय प्रणाली बोझों से उबर सकती है।आंकड़े बताते है कि जिन राज्यों में न्याय पंचायत अस्तित्व में है वहाँ के न्यायलयों में अन्य राज्यों की अपेक्षा कुल लम्बित मुकदमों की संख्या में हिस्सेदारी का प्रतिशत कम है।उदाहरण के तौर पर बिहार में न्याय पंचायत का प्रावधान है।बिहार में न्याय पंचायत को ग्राम कचहरी कहते हैं।बिहार की पूरे देश मे कुल लम्बित मुकदमो की संख्या में 6 प्रतिशत ही हिस्सेदारी है।यह सिर्फ ग्राम कचहरी के कारण ही सम्भव हुआ जहाँ 98 प्रतिशत विवाद आपसी सौहार्द व शांतिपूर्ण ढंग से बिना किसी विधि व्यवसायी के झंझट में पड़े सुलझा लिए जाते हैं।
इसी तरह हिमाचल प्रदेश में भीं न्यायपंचायत बहुत अच्छी भूमिका निभा रहीं हैं।
आज प्रत्येक ग्राम को अपनी न्यायपालिका की जरूरत है
न्याय आयोग की 114 वीं रिपोर्ट में न्याय प्रणाली को सुधारने के लिए ग्राम न्यायलय की स्थापना की बात कही गयी थी।विशेषज्ञों ने इस सम्बंध में अपनी राय दी थी कि यदि न्याय पंचायत को को सुदृढ़ सक्रिय बना दिया जाए तो वे स्वयं ग्राम न्यायालय की तरह कार्य करने लगेंगे।आज न्याय आयोग की उस रिपोर्ट व विशेषज्ञों की राय के अमल की जरूरत है तभी हमारी न्यायपालिका मुकदमों के बोझों से हल्की हो सकेगी ,तभी न्याय समय पर मिल सकेगा ,तभी वादी प्रतिवादी को तारीख पे तारीख से छुट्टी मिल सकेगी।
दोस्तों ,न्याय पंचायत क्या है ? मेरा ब्लॉग आपको कैसा लगा।कमेंट करके जरूर बताइयेगा ।आपको पसंद आया हो और आपको लगता हो कि हमारी ग्राम न्यायपालिका की जानकारी प्रत्येक ग्रामीण युवा तक पहुंचे तो प्लीज मेरे ब्लॉग को शेयर भी कर दीजिए।
उम्मीद करता हूँ ' न्याय पंचायत क्या है ? 'आपको अच्छे से समझ मे आ गया होगा।आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव का तहेदिल से स्वागत है।
पूरा ब्लॉग पढ़ने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
4 टिप्पणियाँ
Click here for टिप्पणियाँBahut achhi aur sateek jankari diya h aapne
Replyबहुत अच्छी जानकारी
Replyअति उत्तम कर्य
Replyअनारक्षित एफ कितने जाति के लोग चुनाव लड सकते है और अनारक्षित एफ मे महिला ,पुरूष दोनो लोग आते है या केवल महिला या केवल पुरूष
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