सोशल ऑडिट क्या है


सोशल ऑडिट क्या है-

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जनता द्वारा सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमो की छानबीन करना ,उनकी जमीनी हकीकत जानना सोशल ऑडिट है।
ऑडिट शब्द यूनानी भाषा के आडियार  से बना है जिसका अर्थ होता  है ' सुनना '। 
 सामाजिक अंकेक्षण में  जनता जमीनी स्तर पर विकास कार्यों को जाँचती है ,परखती है ,मूल्यांकन करती है  ततपश्चात रिपोर्ट तैयार करती है  और उसे  ग्राम सभा मे पढ़कर सुनाती है।

साधारण शब्दो मे कोई कार्य जिस रुप मे होना चाहिये था उस रूप में हुआ है या नहीं इसकी जाँच  जब सरकार द्वारा एक स्वतंत्र एजेंसी के माध्यम से  समुदाय की सहभागिता व सहयोग के साथ  की जाती है तब वह सोशल ऑडिट अर्थात सामाजिक अंकेक्षण कहलाता है ।

सोशल ऑडिट का इतिहास - 

  1990 के दशक में राजस्थान में अरुणा राय ,निखिल डे और शंकर सिंह के नेत्रत्व में किसान मजदूर शक्ति संगठन ने  अपना पैसा  अपना हिसाब की आवाज उठाई ।यह आवाज राजस्थान में  एक जन आंदोलन बन गई ।इसी जन आंदोलन से ही सामाजिक अंकेक्षण की अवधारणा का जन्म हुआ था ।बाद में यह अवधारणा सरकार द्वारा स्वीकार कर ली गई ।2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अर्थात मनरेगा में धारा 17 के अंतर्गत समाजिक अंकेक्षण को अनिवार्य कर दिया गया ।2017 में मेघालय राज्य ने अपने सभी विभागों में सामाजिक अंकेक्षण को अनिवार्य कर दिया  है।

 उत्तर प्रदेश में भारत सरकार की अपेक्षानुसार सोशल आडिट के संचालन हेतु अगस्त,2012 में उत्तर प्रदेश सोशल आडिट संगठन तथा उसके अधीन  सोशल आडिट निदेशालय को एक स्वतंत्र इकाई रूप में प्रारम्भ किया गया ।सोशल आडिट की  उपयोगिता व महत्ता को दृष्टिगत रखते हुये शासन द्वारा अन्य विभागों जैसे पंचायतीराज ,बेसिक शिक्षा विभाग ,समाज कल्याण विभाग ,सिचाई विभाग,पिछड़ा वर्ग कल्याण ,महिला एवं बाल विकास  आदि में सोशल आडिट कराने का निर्णय लिया गया।

किन किन योजनाओं का होता है सोशल ऑडिट- 

सर्वप्रथम सामाजिक अंकेक्षण मनरेगा में धारा 17 के अंतर्गत अनिवार्य किया गया था ।मनरेगा में सामाजिक अंकेक्षण की उपयोगिता ने सरकार को इसे अन्य विभागों में लागू करने के लिये मजबूर कर दिया।वर्तमान में सामाजिक अंकेक्षण निम्नलिखित कार्यक्रमों/योजनाओं में लागू है -

  1. मनरेगा
  2. प्रधानमंत्री आवास योजना 
  3. स्वच्छ भारत मिशन
  4. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
  5. किशोर न्याय बोर्ड
 2017 से मेघालय राज्य ने अपने सभी विभागों में सोशल ऑडिट को अनिवार्य कर दिया है।


सोशल ऑडिट की प्रक्रिया-

प्रत्येक वर्ष एक सोशल आडिट कलेंडर जारी किया जाता है जिसमे प्रत्येक ग्राम पंचायत में कब-कब सोशल ऑडिट होना है ,का उल्लेख होता है।

    कलेंडर के अनुसार ब्लॉक स्तर पर सोशल ऑडिट टीम तैयार होती है।ब्लॉक स्तर पर सोशल ऑडिट टीम के चयन के प्रत्येक राज्य में अलग अलग मानदण्ड हैं ।उत्तरप्रदेश में ब्लॉक स्तर पर सोशल ऑडिट टीम का चयन राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंतर्गत बने समूहों में से 40 वर्ष की उम्र की महिला /पुरुषों से किया जाता है।

जिस ग्राम पंचायत में सोशल आडिड होता है वहाँ ग्राम सभा के सदस्यों को 15 दिन पहले सोशल ऑडिट की जानकारी पम्फलेट या अन्य प्रचार प्रसार के माध्यम से दी जाती है ।

 ततपश्चात सोशल ऑडिट टीम द्वारा उस योजना या कार्यक्रम का चयन किया जाता है जिसका सोशल ऑडिट किया जाना होता है।

कार्यक्रम या योजना के चयनोपरांत उस कार्यक्रम या योजना से सम्बंधित जरूरी दस्तावेज एकत्र किए जाते हैं फिर एकत्रित दस्तावेजों ,आंकड़ों का सरलीकरण किया जाता है ताकि जनसामान्य को सरकारी या तकनीकी शब्द आसानी से समझ आ जाएं ।

सरलीकरण के उपरांत सोशल ऑडिट टीम सर्वप्रथम कागजों का मिलान करती है फिर ग्राउंड पर जाकर योजना क्रियान्वयन की जांच करती है  व उन कार्यों का मिलान करती है जो कागजों में दर्शाये हैं।साथ ही सोशल आडिट टीम उन सभी कामगारों से भी प्रश्न करती है जिनका नाम मस्टर रोल में उल्लेखित है।

इस तरह ग्राउंड पर जाँच करने के पश्चात सोशल ऑडिट टीम एक रिपोर्ट तैयार करती है।यह रिपोर्ट सोशल ऑडिट टीम द्वारा ग्राम सभा की खुली बैठक में पढ़कर सुनाई जाती है।ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा जो आपत्तियां बताई जाती है उन्हें सोशल ऑडिट टीम द्वारा लिखा जाता है।

ग्राम सभा की बैठक के उपरांत ब्लॉक स्तर पर भी एक बैठक का आयोजन किया जाता है ततपश्चात सोशल ऑडिट टीम द्वारा  रिपोर्ट जमा कर दी जाती है।इस रिपोर्ट में जो आपत्तियां दर्ज होती हैं सक्षम अधिकारियों द्वारा उनका निराकरण किया जाता है।


  • सरकारी योजना या कार्यक्रम का चयन
  • योजना से सम्बंधित दस्तावेजों का एकत्रण
  • तथ्यों का सरलीकरण 
  • दस्तावेजों की जाँच करना
  • कार्यों की ग्राउंड स्तर पर जाँच करना 
  • दस्तावेजों और कार्यो  का मिलान करना
  • रिपोर्ट तैयार करना
  • रिपोर्ट ग्राम सभा मे पढ़कर सुनाना
  • आपत्तियों को लिखना
  • रिपोर्ट को जमा करना

सोशल ऑडिट के उद्देश्य-

  1. योजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन व निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना ।
  2. योजनाओं व कार्यक्रमो की जानकारी जनसामान्य को सुलभ कराना।
  3. अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना।
  4. योजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के प्रत्येक स्तर पर जन भागीदारी को बढ़ाना।
  5. योजनाओं में भ्रष्टाचार व अनियमितता की निगरानी रखना ।
  6. जनता में जागरूकता लाना।
  7. किसी योजना या कार्यक्रम का लाभार्थी पर क्या प्रभाव पड़ा इसकी समीक्षा करना।
  8. पंचायत में योजनाओं की निगरानी के लिए जनसामान्य को शिक्षित कर सामाजिक पूंजी तैयार करना।
  9. सरकारी योजनाओं में लीकेज को रोकना।
  10. पारदर्शिता ,जवाबदेही और जनभागीदारी को बढ़ाना ।

सोशल ऑडिट और पब्लिक ऑडिट में अंतर-  

सोशल  ऑडिट  व पब्लिक ऑडिट दोनों ही ऑडिट में  जनसामान्य की भागीदारी रहती है ।परंतु फिरभी दोनों में अंतर है।
  • सोशल ऑडिट सोशल ऑडिट निदेशालय द्वारा द्वारा जारी कलेंडर की तिथिनुसार होता है जबकि पब्लिक ऑडिट किसी भी समय जनता द्वारा किया जा सकता है।
  • सोशल ऑडिट  ,निदेशालय द्वारा चयनित सोशल ऑडिट टीम द्वारा जनसहभागिता के साथ किया जाता है जबकि पब्लिक ऑडिट में सरकारी टीम की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।पब्लिक ऑडिट में जनता स्वयं कार्यों की जाँच करती है।
  • सोशल ऑडिट में सोशल ऑडिट टीम कार्यों के जांचोपरांत रिपोर्ट तैयार करती है और ग्राम सभा मे पढ़कर सुनाती है जबकि पब्लिक ऑडिट में जनता रिपोर्ट तैयार करती है उसे ग्राम सभा की बैठक में पढ़कर सुनाना आवश्यक नहीं होता है

सोशल ऑडिट और सामान्य ऑडिट में अंतर- 

  • सोशल ऑडिट जन समुदाय की सहभागिता से किया जाता है जबकि सामान्य ऑडिट  समुदाय की जनसहभागिता के बिना किया जाता है।
  • सोशल ऑडिट सोशल ऑडिट टीम द्वारा जनता के साथ किया जाता है जबकि सामान्य ऑडिट बाहरी व्यक्ति द्वारा किया जाता है।
  • सोशल ऑडिट में दस्तावेजों के साथ उनका भौतिक सत्यापन किया जाता है व उनका मिलान किया जाता है जबकि सामान्य ऑडिट में केवल दसतवेज़ों को देखा जाता है।
  • सोशल ऑडिट में सामाजिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है जबकि सामान्य ऑडिट में सामाजिक जवाबदेही सुनिश्चित नहीं होती है।
  • सोशल ऑडिट में पारदर्शिता के साथ जनकल्याण की भावना निहित होती है जबकि सामान्य ऑडिट में पारदर्शिता नहीं होती है।
  • सोशल ऑडिट में योजनाओं के क्रियान्वयन का समुदाय व  क्षेत्र पर असर देखा जाता है जबकि सामान्य ऑडिट में केवल यह देखा जाता है कि कार्य नियमानुसार हुए हैं या नहीं।
 

सोशल आडिट का महत्व - 

  • उन संस्थानों में जहां कैग द्वारा आडिट नहीं किया जाता है वहाँ सोशल आडिट महत्वपूर्ण एवं कारगर  है।
  • सोशल आडिट की प्रक्रिया में जनसामान्य की प्रशासन के साथ सहभागिता होती है जिसके कारण प्रजातन्त्र को और अधिक मजबूती मिलती है।
  • अधिकारी व जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।
  • योजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन व निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ती है।
  • अनिमितताओं पर नियंत्रण लगता है।
  • भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता है।
  • कार्यों का भौतिक सत्यापन किया जाता है जिसके कारण सोशल आडिट की प्रक्रिया और अधिक प्रभावी हो जाती है।

सोशल आडिट के समक्ष आने वाली चुनौतियां- 

  • अधिकारियों का सोशल आडिट की प्रक्रिया में रुचि न रखना ।अधिकारियों द्वारा सिर्फ औपचारिकताओं की ही खाना पूर्ति किया जाना।
  • सोशल आडिट टीम के सदस्यों का अपने कार्य के प्रति ईमानदार न रहना ।
  • सोशल आडिट टीम के सदस्य व ब्लाक कॉर्डिनेटर का प्रधान या रोजगार सेवक से सांठगांठ कर लेना।
  • जागरूक ग्रामीणों का सोशल आडिट प्रक्रिया में रुचि न लेना ।
  • जागरूक ग्रामीणों का पंचायत के कार्यों के प्रति उदासीन रहना।
  • ग्रामीणों में जागरूकता का अभाव ,अशिक्षा आदि।

सोशल आडिट को और कारगर कैसे बनाया जा सकता है-

सोशल आडिट की प्रक्रिया ग्रामीण भारत मे कुछ हदतक भ्रस्टाचार पर अंकुश लगाने में कारगर सिद्ध हुई है पर यह अभी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है।
   सरकार  ने सोशल आडिट के महत्व को समझा है इसीलिए वह इसको और अधिक कारगर बनाने के लिए प्रयासरत है
  जबतक योजनाओं व कार्यक्रमों में और अधिक पारदर्शिता नहीं बढ़ेगी ,अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों में और अधिक जवाबदेही नहीं बढ़ेगी और जब तक जनसमुदाय की और अधिक भागीदारी नहीं बढ़ेगी तब तक सोशल आडिट अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकता।
 आज जरूरत है कि जनसमुदाय  जागरूक एवं शिक्षित हो तभी वह अपने अधिकारों एवं योजनाओं के बारे में जान सकता ।प्रश्न कर सकता है और उनके क्रियान्वयन की ,उनके प्रभाविकता की जांच एवं मूल्यांकन कर सकता है।
 सरकार  व स्वैच्छिक संगठनों द्वारा जनसामान्य में   सोशल आडिट के महत्व के प्रचार प्रसार की जरूरत है ताकि अधिक से अधिक लोग सोशल आडिट की प्रक्रिया में शामिल हों। 

उत्तर प्रदेश सोशल आडिट संगठन- 

जमीनी हकीकत-

1990 के दशक में किसान मजदूर शक्ति संगठन द्वारा अपना पैसा अपना हिसाब का आंदोलन चलाया इसी से आंदोलन से सोशल ऑडिट की अवधारणा का जन्म हुआ ।सरकार ने इस अवधारणा की महत्ता को समझा और इसे ग्रामीण भारत की तमाम योजनाओं के लिये आवश्यक कर दिया ताकि ऊपर से जो योजना या पैसा  भेजा जा रहा है वह समाज के आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुँच रहा है या नहीं।ग्राम पंचायत में सम्पदाओं का निर्माण हो रहा है या नहीं ।कितनी सुंदर व्यवस्था हमारे नीतिकारों ने की है पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है

 जितनी ज्यादा निगरानी उतना अधिक भ्रष्टाचार की कहावत सही चरितार्थ होती लगती है।सरकार ने सोशल आडिट को ग्रामीण भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण अस्त्र समझा पर सरकार के मुलाजिमों ने सुचिता से कार्य न करके इसकी आत्मा की हत्या कर दी।
 





महत्वपूर्ण लिंक - 
 http://socialauditup.in



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