मनरेगा क्या है what is mnrega-
भारत सरकार ने ग्रामीण परिवार के लिये रोजगार की गारंटी हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को सितम्बर 2005 अधिनियमित कर दिया।अब राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम( नरेगा) बन गया अर्थात इच्छुक ग्रामीण परिवार को 100 दिनों के रोजगार की गारण्टी मिल गयी।
2 फरवरी 2006 को आंध्रप्रदेश के गांव से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम नरेगा की शरुआत हुई ।अपने पहले चरण में नरेगा को 200 जिलों में लागू किया गया था। दूसरे चरण (2007-2008 )में इसका 130 और जिलों में विस्तार किया गया। 1 अप्रैल 2008 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अर्थात नरेगा को सम्पूर्ण भारत मे लागू कर दिया गया।2 अक्टूबर 2009 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलकर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अर्थात मनरेगा कर दिया गया।
मनरेगा के उद्देश्य -
महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ,2005 यानी मनरेगा ग्रामीण भारत की सूरत को बदल दिया है ।ग्रामीण भारत मे न केवल वयस्क ग्रामीणों को आजीविका की सुरक्षा मिली बल्कि उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति में बदलाव भी आया है ।यह बदलाव सम्पूर्ण ग्रामीण परिवेश में आया है।एक ओर जहाँ लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है वहीं गाँवों में टिकाऊ परिसम्पत्तियों का निर्माण भी हुआ है।
मनरेगा के निम्न उद्देश्य हैं -
- अकुशल शारीरिक श्रम करने वाले वयस्क सदस्यों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना।
- गरीबों के आजीविका संसाधनों के आधार को सुदृढ़ करना।
- समाजिक समावेशन को स्वघोषित रूप में सुनिश्चित करना।
- पंचायतीराज संस्थाओं को सशक्त करना।
मनरेगा के लक्ष्य -
- टिकाऊ परिसम्पत्तियों के सृजन ,जल सुरक्षा ,मृदा संरक्षण और उच्च भूमि उत्पादकता के जरिये आजीविका की सुरक्षा करना
- मजदूरी रोजगार अवसर की गारंटी देकर ग्रामीण भारत मे सर्वाधिक कमजोर लोगों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- ग्रामीण भारत मे सूखा रोधन और बाढ़ नियंत्रण।
- समाजिक रूप से लाभवंचित वर्गों विशेषकर महिला ,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के वर्गों को अधिकार सम्पन्न करना।
- ग्रामीण क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन आधार को पुनर्जीवित करना।
- पंचायतीराज संस्थाओं को सुदृढ़ करके जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना।
मनरेगा में किसको कार्य मिलता है ?
कोई भी ग्रामीण परिवार का वयस्क सदस्य जो अकुशल मजदूरी करने को तैयार है और मजदूरी के लिये अपनी ग्राम पंचायत में आवेदन करता है।उसे ग्राम पंचायत 15 दिन के अंदर रोजगार देती है ।जिसमे एक तिहाई महिला कामगारों को प्राथमिकता दी जाती है।
परिवार के अंतर्गत माता पिता और आश्रित बच्चे आते हैं ।एक व्यक्ति को भी परिवार का दर्जा दिया गया है।जॉब कार्ड में परिवार के सभी वयस्क सदस्यों का नाम अंकित होता है और एक समय मे जॉब कार्ड में अंकित परिवार के एक या एक से अधिक इच्छुक वयस्क सदस्य रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।मगर एक परिवार या जॉब कार्ड पर 100 दिन का ही रोजगार प्राप्त होता है।
जॉब कार्ड कैसे बनता है-
मनरेगा कार्य के लिये मनरेगा मजदूर के लिये सबसे आवश्यक दस्तावेज जॉब कार्ड है।जॉब कार्ड में परिवार के सभी वयस्क सदस्यों का नाम अंकित होता है।एक परिवार का एक जॉब कार्ड बनता है। उस परिवार के जॉब कार्ड का एक यूनीक नम्बर होता है ।जॉबकार्ड में अंकित परिवार का कोई सदस्य रोजगार की मांग कर सकता है एवं रोजगार प्राप्त कर सकता है।
जॉब कार्ड के लिये आवेदन ग्राम पंचायत ,रोजगरसेवक या कार्यक्रम अधिकारी के पास किया जाता है।ग्रामसभा की बैठक में जॉब कार्ड के लिये आये आवेदनों पर विचार किया जाता है।ग्राम सभा की बैठक में इस बात पर भी विचार किया जाता है कि जॉबकार्ड आवेदक फर्जी तो नहीं है।वह ग्रामपंचायत का निवासी है और 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का है।इन सब बातों का परीक्षण करने के बाद ही ग्राम पंचायत जॉबकार्ड जारी करती है।
इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायत का भी यह दायित्व है कि वह अपनी ग्राम पंचायत में देखे कि कोई गरीब या वंचित परिवार या व्यक्ति जॉबकार्ड से छूट तो नहीं गया है।ऐसे परिवारों या व्यक्ति के जॉबकार्ड बनवाने की जिम्मेवारी ग्रामपंचायत की होती है।
रोजगार के लिये आवेदन कैसे करते हैं-
मनरेगा में रोजगार के लिये इच्छुक वयस्क सदस्यों को ग्राम पंचायत या रोजगरसेवक या कार्यक्रम अधिकारी के पास मौखिक या लिखित रूप में रोजगार के लिये आवेदन करना होता है।एक व्यक्ति अकेले या समूह में भी आवेदन कर सकता है।
लिखित में आवेदन आवेदन फार्म पर या सादे कागज पर किया जा सकता है।आवेदनकर्ता को अपना नाम ,जॉबकार्ड संख्या व कब से कब तक काम चाहता है का ब्यौरा एक सादे कागज पर लिखकर रोजगार सेवक को देना होता है।रोजगरसेवक आवेदनकर्ता को दिनाँक सहित प्राप्ति रसीद देता है ।ताकि उसके आवेदन की पुष्टि हो सके।आवेदन करने की दिनाँक से 15 दिन के अंदर रोजगार देना पंचायत के लिये आवश्यक है यदि पंचायत 15 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं करा पाती है तो कामगार को बेरोजगारी भत्ता प्राप्त होता है।
एकबार में कम से कम 14 दिन के कार्य की मांग की जाती है और अधिकतम 100 दिनों के कार्य की।
15 दिन में रोजगार न मिले तो-
मनरेगा कानून 100 दिन के काम की गारंटी ही नहीं देता बल्कि मनरेगा कामगार को बेरोजगारी भत्ता का अधिकार भी देता है।महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ,2005 की धारा 7 में मनरेगा कामगारों के बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान है।इस धारा के अनुसार यदि कामगार को उसके काम के आवेदन की दिनाँक से 15 दिन के अंदर ग्रामपंचायत काम उपलब्ध नहीं कराती है तो कामगार को 16 वें दिन से बेरोजगारी भत्ता प्राप्त होगा।यह बेरोजगारी भत्ता राज्य सरकार देगी।
बेरोजगारी भत्ता कब प्राप्त नहीं होगा-
यदि कामगार ने काम के लिये आवेदन किया है और वह बिना किसी कारण बताए काम पर नहीं जाता है तो उस स्थिति में उसे बेरोजगारी भत्ता नहीं प्राप्त होगा।उसे आगे भी 3 माह तक 15 दिन के अंदर काम न मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता प्राप्त नहीं होगा।
यदि कामगार ने 100 दिन का कार्य पूरा कर लिया है वह अतिरिक्त कार्य के लिये आवेदन करता है तो उस स्थिति में भी वह बेरोजगारी भत्ता नहीं प्राप्त कर सकता है।
कामगारों के लिये कार्यस्थल पर उपलब्ध सुविधायें-
- कार्यस्थल पर कामगारों के लिये शुद्ध सुरक्षित पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिये।
- कार्यस्थल पर कामगारों के विश्राम के लिये छाया की व्यवस्था होनी चाहिए ।
- कार्यस्थल पर प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स (first aid kit)होना चाहिये ।
- महिला कामगारों के साथ यदि 6 वर्ष से कम के 5 या 5 से अधिक बच्चे हैं तो उन बच्चों की देखभाल के लिए एक महिला रखी जायेगी जिसे कामगारों के बराबर मजदूरी मिलेगी।
मनरेगा कामगार के निवासस्थल के 5 किलोमीटर दायरे में कार्य प्राप्त होता है -
महात्मा गाँधी ग्रमीण रोजगार गारंटी अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि कामगार को काम ग्रामपंचायत की 5 किलोमीटर की परिधि में ही मिलेगा यदि कोई कार्यदायी संस्था कामगारों से उसके निवास स्थल से 5 किलोमीटर दूर कार्य कराती है तो कामगारों को मजदूरी का 10 प्रतिशत अतिरिक्त भत्ता प्राप्त होगा।
मनरेगा में कामगार को कितनी मजदूरी मिलती है-
अकुशल हस्त कामगारों के लिये उत्तरप्रदेश में मजदूरी दर 204 रुपये निर्धारित की गई है।
सर्वाधिक मजदूरी सिक्किम राज्य की तीन ग्राम पंचायते ज्ञानथांग ,लाचुंग और लाचेन में है , जहाँ कामगारों की मजदूरी दर 318 रुपये है ।इसके अलावा हरियाणा राज्य में मजदूरी दर 315 रुपये है।छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे कम मजदूरी दर 193 रुपये है।बिहार राज्य में मजदूरी दर 198 रुपये है।
मनरेगा कामगारों /श्रमिकों के न्यूनतम अधिकार -
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ,2005 की धारा 5 में इस बात का प्रावधान है कि इस अधिनियम के अधीन बनाई गई किसी योजना या स्कीम के अधीन नियोजित व्यक्ति ऐसी सुविधाओं का हकदार होगा जो अनुसूची 2 मे विनिर्दिष्ट न्यूनतम सुविधाओं से कम नहीं हो।
अनुसूची 2 में विनिर्दिष्ट न्यूनतम सुविधाएं निम्न हैं -
- कामगारों के लिये कार्यस्थल पर स्वच्छ सुरक्षित पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।
- कार्यस्थल पर कामगारों के लिये विश्राम की अवधि के लिये शेड की व्यवस्था होनी चाहिए।
- कार्यस्थल पर कामगारों की छोटी-मोटी चोट के उपचार के लिये प्राथमिक सहायत बॉक्स की व्यवस्था होनी चाहिए।
- महिला कामगारों के लिये जिनके साथ 6 वर्ष से कम आयु के बालक हैं ,जिनकी संख्या 5 या 5 से अधिक है बालकों की देखरेख के लिये एक अन्य महिला कामगार की व्यवस्था की जायेगी।उस महिला कामगार को अन्य कामगारों के बराबर मजदूरी मिलेगी।
- कार्यस्थल पर यदि कोई कामगार घायल हो जाता है तो उसका इलाज अधिनियम के प्रवधानानुसार निशुल्क होगा।
- कार्यस्थल पर यदि कोई कामगार दुर्घटना वश अधिक घायल हो जाता है और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है तब इस स्थिति में अस्पताल के खर्च अर्थात बेड ,डॉक्टर फीस व दवाइयों का खर्च निशुल्क होगा ।साथ ही कामगार को अपेक्षित मजदूरी की आधी या आधी से अधिक मजदूरी का भुगतान प्राप्त होगा।
- यदि योजना के अंतर्गत कार्य कर रहे किसी कामगार की कार्य के दौरान मृत्यु हो जाती है या विकलांग हो जाता है तब कार्यान्वयन अभिकरण 25 हजार की दर से या ऐसी राशि जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करे आग्रहपूर्वक प्रदान की जाएगी यथास्थिति मृत या विकलांग व्यक्ति के वारिसों को प्रदान की जाएगी।
- कामगारों को काम के आवेदन की दिनाँक सहित रसीद पाने का अधिकार है।
- काम के आवेदन की दिनाँक से 15 दिन के अंदर काम पाने का अधिकार।
- 15 दिन के अंदर काम न मिलने पर बेरोजगारी भत्ता प्राप्त करने का अधिकार।
- कामगारों को अपने निवास स्थल से 5 किलोमीटर की परिधि (दायरे) में काम प्राप्त होना ।निवास स्थल से 5 किलोमीटर की अधिक दूरी पर काम करने पर मजदूरी का 10 प्रतिशत अतिरिक्त भत्ता प्राप्त करने का अधिकार।
- कामगार को मस्टररोल ,माप पुस्तिका व अन्य दस्तावेजों को देखने का अधिकार है।
ग्रामपंचायत स्तर पर मनरेगा के कौन कौन कर्मचारी होते हैं -
ग्राम पंचायत स्तर पर मनरेगा के दो मुख्य कर्मचारी होते हैं ।एक तो ग्राम रोजगार सेवक व दूसरा मेट या कार्यस्थल पर्यवेक्षक ।आइये एक एक करके दोनों कर्मियों के कार्यों के बारे में जानते हैं-
ग्राम रोजगार सेवक-
ग्राम रोजगार सेवक ग्राम स्तर का एक महत्वपूर्ण कर्मचारी होता है।जिसके निम्न कार्य होते हैं -
- जॉब कार्ड के लिये रजिस्ट्रेशन करना ,रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया का पर्यवेक्षण करना,मजदूरों को जॉब कार्ड उपलब्ध कराना।
- कामगारों से काम के आवेदन स्वीकार करना व कामगारों को दिनांकित रशीद देना।
- कार्य प्रारंभ होने की सूचना कामगारों को देना ,काम प्रारम्भ होने की सूचना पंचायत भवन के नोटिस बोर्ड चस्पा करना।
- कामगारों में कार्य को बांटना ।
- ग्रामसभा की बैठक को सुगम बनाना तथा सोशल ऑडिट व रोजगार दिवस को सुगम बनाना।
- सुनिश्चित करना कि कार्यस्थल पर कामगारों के प्रत्येक समूह को मिट्टी के कार्य की निशानदेही की जाती है जिससे कामगारों को यह पता रहे कि उन्हें मजदूरी दर प्राप्त करने की लिये कितना कार्य करना होगा।
- इसकी जाँच करना कि कार्यस्थल पर मेट समय पर पहुचते हैं या नहीं और कार्य स्थल पर ही मस्टररोल में हाजरी भरते हैं या नहीं।
- यह सुनिश्चित करना कि कार्यस्थल पर कामगारों के लिये अनुसूची 2 के अनुसार सुविधाएं हैं या नहीं।
- कामगारों के जॉबकार्ड को समय समय अपडेट करना।
- ग्रामस्तर पर मनरेगा सम्बन्धी समस्त रजिस्टरों का रखरखाव करना।सचिव या अन्य कर्मी जो मनरेगा लेखा के संधारण के लिये जिम्मेदार है की सहायत करना।
- मनरेगा के समस्त दस्तावेजो या अभिलेखों को आमजन के निरीक्षण हेतु सुलभ कराना।
मेट या कार्यस्थल पर्यवेक्षक -
मेट कार्यस्थल पर्यवेक्षक होता है।कितने कामगारों पर एक मेट होगा, अलग अलग राज्यों में इसके लिये अलग नियम हैं ।साधरणतया 100 मनरेगा कामगारों पर एक मेट होता है।
6 मार्च 2021 की विज्ञप्ति के अनुसार कम से कम 20 और अधिक से अधिक 40 कामगारों पर एक मेट नियुक्ति होगी।
मेट की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से की जाती है। जो व्यक्ति कक्षा 8 पास है और मनरेगा में 50 दिन एक कामगार के रूप में विगत वित्तीय वर्ष में या आगामी वर्ष में कार्य किया हो वह पंचायत में एक निश्चित प्रारूप पर मेट के लिए आवेदन कर सकता है।मेट को एक कुशल कामगार की मजदूरी दी जाएगी।
मेट के लिये प्राथमिकता -
ग्राम पंचायत की पढ़ी लिखी महिला को या विकलांग को मेट कार्य के लिये प्राथमिकता दी जाती है।
नोट- एक व्यक्ति जब मेट के रूप में कार्य कर रहा होता है तो वह उसी समय उस कार्य मे कामगार के रूप में कार्य नहीं कर सकता है।
मेट के कार्य -
- कार्यस्थल का पर्यवेक्षण करना।
- कार्यस्थल पर ही मस्टररोल में हाजिरी लेना।
- कामगारों को कार्य बाँटना।
- कार्य प्रारंभ होने से पूर्वकार्यस्थल पर मिट्टी कार्यो की निशानदेही करना।
- दिन के अंत मे माप लेना।
- जॉबकार्ड आवेदन को सुगम बनाना तथा उन्हें ग्राम पंचायत में प्रस्तुत करना।
- कामगारों के लिये काम की मांग को सुगम बनाना ,कामगारों की तरफ से पंचायत में कार्य की मांग लगाना तथा पंचायत से दिनांकित पावती रशीद प्राप्त करना।
- निरीक्षर कामगारों को हस्ताक्षर सीखने में सहायता करना।
- मेट हुये मस्टररोल को पंचायत में प्रस्तुत करना।
- यह निगरानी करना कि उसके समूह या समूहों में कोई कामगार बिना काम किये लाभ न पाए।
मनरेगा कार्य की मॉनिटरिंग/निगरानी-
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ,2005 की धारा 17 (1) में यह प्रावधान है कि ग्राम सभा, ग्राम पंचायत में कार्यों के निष्पादन की मॉनिटरिंग करेगी।
धारा 17(2) में सोशल ऑडिट का प्रावधान है।इसमें कहा गया है कि ग्राम सभा ग्राम पंचायत में मनरेगा स्कीम के अंतर्गत क्रियान्वित सभी परियोजनाओं की नियमित सोशल ऑडिट करेगी।
जमीनी हकीकत -
मनरेगा विश्व एक सर्वोत्तम योजना है इसने न केवल ग्रामीणों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया है बल्कि रोजगार की गारंटी भी दी है।अब गाँवो में अकुशल कामगारों के लिए काम उपलब्ध रहता है जब चाहें तब अपनी पंचायत से कार्य मांग सकते हैं और यदि पंचायत 15 दिन में काम उपलब्ध नहीं करती है तो कामगारों को बेरोजगारी भत्ता भी प्राप्त करने का अधिकार है।
गाँव मे रोजगार की गारण्टी से अब ग्रामीण कामगारों का शहर की ओर पलायन रुका है।अब वे गांव में अपने परिवार के साथ साथ रहकर न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करते हैं बल्कि अपने गाँव के विकास में भी सहभागी बनते हैं।
मगर मनरेगा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। कानून के बहुत से प्रावधान सिर्फ औपचारिकता मात्र बनकर रह गए हैं।मेट ,रोजगार सेवक ,प्रधान ,सचिव ,कार्यक्रम अधिकारी, समाजिक अंकेक्षक ( सोशल ऑडिट ) की टीम या ब्लॉक कॉर्डिनेटर सभी मनरेगा को अपनी जेब भरने की स्कीम समझते हैं।किसी को मनरेगा कार्यों में कोई भ्रष्टाचार या खामी नहीं दिखती क्योंकि सभी को धन की चाह है।
मनरेगा कामगारों के अधिकार हों या फिर बेरोजगारी भत्ता सब दूर की बात है।एक अनुमान के मुताबिक 2015 तक 52 लाख बेरोजगारी भत्ता के आवेदन हुए पर किसी को यह भत्ता नहीं मिला।अधिकतर कामगारों को बेरोजगारी भत्ता की जानकारी ही नहीं है वहीं सरकार भी बेरोजगारी भत्ता देने में रुचि नहीं रखती।
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में कामगारों के लिये कार्यस्थल पर न्यूनतम सुविधाओं का प्रावधान है।पर कामगारों को इसकी जानकारी ही नहीं है कि अधिनियम में उनके लिये किन सुविधाओं की बात कही गयी है ।अधिकारी कर्मचारी या प्रधान तो चाहते ही हैं कि कोई कामगार जागरूक न हो क्योंकि उनकी जागरूकता से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा ।आज स्थिति यह कि मनरेगा के किसी भी कार्यस्थल पर कामगारों के लिये कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं रहती है।
मनरेगा कार्य मे कामगारों को न ही तँय मानकों के अनुसार कार्य का बंटवारा किया जाता है और न ही टिकाऊ परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।कुछ गलती सरकार की है तो सबसे अधिक गलती इस स्कीम को क्रियान्वित करने वाले अधिकारी कर्मचारी या जन प्रतिनिधियों की।फर्जी हाजिरी तो भ्रष्टाचारियों की लूट का अहम साधन है। सरकार के करोड़ों रुपये पर फर्जी हाजिरी द्वारा डांका डाला जाता है।सब जानते हैं मगर इस पर कोई अंकुश नहीं लगाता है।
मनरेगा द्वारा ग्राम पंचायतों में हर वर्ष लाखों करोड़ो पौधे लगाए जाते हैं ।ग्राम पंचायत की भूमि पर भी और वैयक्तिक हितधारकों की भूमि पर भी ।पर सिर्फ औपचारिकता के लिये।मनरेगा द्वारा हर वर्ष जितने पौधे लगाए गए हैं यदि वह सुचिता और ईमानदारी से लगाये जाते तो आज हमारी धरा और अधिक हरी भरी होती।पर इससे भ्रष्टाचारियों के पेट कहाँ भरते।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिये मनरेगा ने अपनी धारा 17 में ग्राम सभा और सोशल ऑडिट की व्यवस्था की है।पर कहते हैं कि जितनी ज्यादा निगरानी उतनी ही अधिक लूट ।सोशल आडिट टीम को सरकार ऑडिट के लिये भत्ता देती है पर जमीनी हकीकत यह है कि ऑडिट टीम जिस ग्राम पंचायत में ऑडिट करने जाती है वहाँ भ्रष्टाचारी पहले ही सांठगांठ कर लेते हैं और फिर ऑडिट टीम इन्हीं भ्रष्टाचारियों के मनमुताबिक रिपोर्ट लगाती है। पंचायतीराज के महत्वपूर्ण अंग ग्रामसभा का तो कोई महत्व ही नहीं है। इसलिये क्योंकि न ही ग्रामसभा के सदस्य ग्रामसभा की बैठक आहूत करने में रुचि रखते हैं और न ही प्रधान व अधिकारी।
दोस्तों जबतक ये संस्थाये मजबूत नहीं होंगी ,जबतक जनता अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं होगी तबतक मनरेगा कानून अपने उद्देश्यों ,लक्ष्यों से कोसों दूर रहेगा।
दोस्तों मनरेगा पोस्ट पढ़ने के लिये आपसबका बहुत बहुत धन्यवाद।पोस्ट कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें आपकी प्रतिक्रिया हमे बेसब्री से इंतजार रहता है।
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